Saturday, 22 August 2015

ऐसे पढ़ेगा तो कैसे बढ़ेगा इंडिया?


देश की शिक्षा मंत्री ने देश भर के शिक्षकों को एक चिट्ठी भेजी, चिट्ठी थी तो शिक्षकों को उनके योगदान के लिए शुक्रिया कहने के लिए लेकिन चर्चा में आई स्पेलिंग की गलतियों के कारण । चिट्ठी में स्मृति का नाम समेत कई और शब्दों की स्पेलिंग गलत थी । कितनी शर्मनाक बात है कि शिक्षा मंत्रालय की लिखी चिट्ठी में गलतियां निकलती हैं। स्मृति ने ये पता लगाने को कहा है कि आखिर इस गलती का जिम्मेदार कौन है, लेकिन क्या केवल एक शख्स या कुछ लोगों के कारण ही ये गलती हुई? शायद नहीं।

करीब दो महीने पहले राजस्थान के एक गांव के स्कूल में जाने का मौका मिला । खेतड़ी के खड़कड़ा का ये स्कूल किसी भी आम सरकारी स्कूल की तरह ही लगा, 3-4 कमरों में चल रहे स्कूल में ना बैठने की सही व्यवस्था है और ना ही क्लासरूम में रोशनी की । लेकिन  मेरा ध्यान खींचा यहां की दीवारों पर लिखे शब्दों ने ।

जरा स्कूल की इस मेन गेट पर नजर डालिए, यहां से आप प्रवेश नहीं प्रवश करते हैं।



इसी प्रवश द्वारकी बाईं तरफ एक और पोस्टर  पेंट किया गया है,पोस्टर में परिधि, बेचना और कानूनन की स्पेलिंग गलत है।

प्रवश द्वार की दूसरी तरफ शपथनहीं किसी शपत पत्र की जानकारी है जिसकी व्यवस्था को समाप्त कर दीयहै।


एक और सरकारी पोस्टर कहता है कि यहां पत्र प्राप्त किए जाकर प्राप्ति रसीद दी जाती है



ये दलील दी जा सकती है कि ये सरकारी विज्ञापन हैं और इनका स्कूल के पाठ्यक्रम से कोई लेना देना नहीं है।अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये गलतियां स्कूल की दीवारों पर किसी अशिक्षित पेंटर से हो गई होंगी और इसपर ध्यान नहीं देना चाहिए, तो आप गलत हैं, ये गलतियां उनसे भी हुई हैं जो स्कूल में पढ़ते या पढ़ाते हैं।


स्कूल के अंदर कक्षा प्रतिनिधि और कप्तान- उप कप्तान की जिम्मेदारियों के नोटिस लगे हैं। ये नोटिस किसी शिक्षक या छात्र ने ही लिखे होंगे, किसी अशिक्षित पेंटर ने नहीं। दोनों ही नोटिसों में प्रतिनिधि को प्रतिनिधी लिखा गया है।


कप्तान-उपकप्तान की जिम्मेदारियों वाले नोटिस में तय करेंगे को तैय करेंगे लिखा गया है, कुछ वाक्य भी गलत तरीके से लिखे गए हैं। 


लेकिन क्या पूरे स्कूल में किसी ने इन गलतियों को नहीं देखा? और अगर देखा है तो फिर सही करने की कोशिश क्यों नहीं की गई या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि जो लिखा है वो स्कूल में पढ़ने-पढ़ाने वालों के लिए गलत ही नहीं है? कहीं स्कूल के बच्चे इन गलतियों को सही समझ कर तो नहीं पढ़ रहे हैं?  

क्या बच्चे सिर्फ किताबों से ही सीखते हैं?, क्या स्कूल परिसर में लिखी गई दूसरी चीजें जिन्हें वो दिनभर में कई बार देखते हैं, उनका असर नहीं होता?  गलती किसी से भी, कहीं भी हो सकती है, हो सकता है कि इस लेख में ही मुझसे कई गलतियां हो गई होंगी, लेकिन क्या ये जरूरी नहीं है कि इन गलतियों को नजरअंदाज करने के बजाय इन्हें सुधारने की सलाह दी जाए,  एक स्कूल परिसर में तो ये जरूर होना चाहिए ।

हमारी गलतियों को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति ही कई बार हमें शर्मसार कर देती हैं, स्मृति की चिट्ठी की गलतियां भी शायद इसी का नतीजा है ।

इस बात में तो दो राय नहीं है कि पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। लेकिन सवाल ये उठता है कि  यही पढ़ेगा और ऐसे ही पढ़ेगा तो कैसे बढ़ेगा इंडिया?











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